सुदर्शना ठाकुर कुल्लू जिले के मनाली में एक सम्पन्न परिवार को छोड़कर बेसहारा बच्चों का सहारा बनी

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  कुल्लू/हिमाचल प्रदेश।। ईश्वर की रचना अद्भुत है अद्भुत रचना है नारी जो बच्चों को जन्म तो देती ही है, बल्कि वह समाज में कुछ ऐसे कार्य भी करती है जो दूसरे के लिए भी प्रेरणा बन जाते हैं। कुल्लू जिले के मनाली की रहने वाली सुदर्शना ठाकुर एक ऐसी महिला है जिनको ईश्वर ने सब कुछ दिया है। परंतु उन्होंने धन दौलत की दुनिया को छोड़कर एक अलग ही दुनिया बसा ली। वह दुनिया जहां बेसहारा अनाथ बच्चों की सेवा की जाए। आज सुदर्शना ठाकुर कुल्लू जिले के मनाली में एक सम्पन्न परिवार को छोड़कर बेसहारा बच्चों का सहारा बनी हुई है। वह 'Radha Ngo' नाम से एनजीओ चलाती है। एक दिन की बात है कुछ बेसहारा बच्चे रोड पर भीख मांग रहे थे, पुलिस वाले उन सभी बच्चों को ले आए और उन्हें सुदर्शना को सौंप दिया। सुदर्शना उनका पालन पोषण करने लगी। पैसो की किल्लत से जूझ रही सुदर्शना ने गहने तक बेच दिए, ताकि बच्चे भूखे न रहे। एक बार सुदर्शना सब्जी बनाने के लिए सब्जी वाले से गोभी के पत्ते तक ले आई। एक समय ऐसा भी आया जब एक बेड पर सुदर्शना और अन्य 10 बच्चे सोते थे। लेकिन सुदर्शना ने हार नहीं मानी और वह अन्य बेसहारा बच्चों को भी साथ ले आई। यह सिलसिला चलता रहा और उनके पास 50 से अधिक बेसहारा बच्चों हो गए। जिनके लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी था और संकट भी बढ़ गया था। क्योंकि जो बच्चे छोटे थे अब वह बड़े हो गए थे।
  सुदर्शना ने बताया कि मेरे पास आय का कोई बड़ा स्रोत नहीं था, वह तरह तरह के अचार बनाकर, बुनाई-सिलाई से घर का खर्चा चलाने लगी। एक मां के लिए छोटी सी आय में घर का खर्चा चलाना मुश्किल होता है, वो भी तब जब बच्चे स्कूल जाने के लिए लिए तैयार हो जाते हैं। सुदर्शना ने हार नहीं मानी और अपनी मेहनत के दम पर बच्चों का एडमिशन मनाली के महंगे स्कूल डीपीएस में करा दिया। वह नहीं चाहती थी कि बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कोई अड़चन आए। सुदर्शना का कई बार स्वास्थ्य भी गिर गया लेकिन वह बच्चों के स्वास्थ्य की प्रति ज्यादा चिंतित थी। इस संकट की घड़ी में सरकार और आला अधिकारियों ने मदद करने की बजाय सुदर्शना को बहुत परेशान किया। सुदर्शन आज भी अनाथ बेसहारा बच्चों के लिए काम कर रही है। सुदर्शना एप्पल साइडर, अचार और सिलाई-बुनाई से पैसे जुटा कर बेसहारा बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, घर और रोजगार की व्यवस्था कर रही हैं। इस काम में 300 से अधिक महिलाएं भी जुड़ी हुई है ये महिलाएं 'Radha NGO' के लिए बुनाई का काम करती है। 2004 में सुदर्शना जी ने 'Radha NGO' का रजिस्ट्रेशन कराया था। हालांकि अभी तक सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल पाई है।
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