दिवेर युद्धस्थल के इतिहास को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की आवश्यकता - प्रो. खरकवाल

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प्रताप गौरव केन्द्र और राजस्थान विद्यापीठ साहित्य संस्थान ने संयुक्त रूप से किया दिवेर युद्धस्थल का अवलोकन
दिवेर और छापली क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण करेंगे दोनों संस्थान
शौर्य के इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए दिवेर तक पगफेरे बढ़ाने के प्रयासों की बताई जरूरत
 उदयपुर/राजस्थान।। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के मातृभूमि को समर्पित संघर्ष में ऐतिहासिक हल्दीघाटी युद्ध की तरह ही दिवेर का युद्ध भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विडम्बना ही है कि दिवेर युद्ध के शौर्य को इतिहास में समुचित स्थान नहीं मिल सका और नई पीढ़ी तक आज भी दिवेर युद्ध को लेकर जानकारी का अभाव है।
 यह चिंता जताते हुए जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो. जीवन खरकवाल ने कहा कि दिवेर के गौरवपूर्ण इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए यहां तक पगफेरे बढ़ाने के पुरजोर प्रयास करने होंगे। इतिहास पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों, इतिहास की लघु परियोजनाएं कराने वाले विद्यालयों सहित सरकार को भी दिवेर की दिशा में फोकस करना होगा।
दिवेर युद्धस्थल के इतिहास को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की आवश्यकता - प्रो. खरकवाल
  प्रो. खरकवाल ने यह बात अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के उपलक्ष्य में प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ तथा साहित्य संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दिवेर युद्धस्थल के विशेष भ्रमण कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि दिवेर सहित उसके नजदीक छापली व अन्य ऐतिहासिक स्थलों के पुरातात्विक सर्वेक्षण के साथ नई पीढ़ी को इन स्थलों से जोड़ने के लिए नवाचारयुक्त प्रयासों पर विचार करना होगा।
  प्रताप गौरव शोध केन्द्र के अधीक्षक डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि प्रताप गौरव केन्द्र व साहित्य संस्थान ने दिवेर व छापली का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का निर्णय किया है। इसी क्रम में स्थानीय लोगों से विचार-विमर्श की शुरुआत की गई। दोनों स्थलों की वर्तमान स्थिति सहित स्थानीय निवासियों से वहां की आवश्यकताओं सहित इन दोनों स्थलों के शौर्यस्थल के रूप में स्थापित करने पर विचार संग्रहित किए गए। प्रो. खरकवाल ने बताया कि इस कार्य के दौरान जनश्रुतियों में समाहित इतिहास का भी संकलन किया जाएगा।
  पुरातत्व शोधार्थियों ने इन दोनों क्षेत्रों में सर्वेक्षण के दौरान वहां की बसावट, भवनों के अवशेष, मृदभाण्डों के अवशेष, सुरक्षा दीवार के अवशेष, नाड़ी, बावड़ी आदि के प्रमाणों का संग्रहण किया। दिवेर के युद्ध स्थल राताखेत का भी अवलोकन किया गया। यहां अभी खेती हो रही है। स्थानीय लोगों ने बताया कि राताखेत में पहले परकोटा हुआ करता था जो अब ध्वस्त हो चुका है, जिसके अवशेष अवश्य नजर आते हैं। उन्होंने भी इस स्थल के विस्तृत सर्वेक्षण की आवश्यकता बताई।
  छापली में भी प्राचीन चैकियों, शहीद स्थल आदि का अवलोकन किया गया। छापली निवासी चंदन सिंह ने शोधार्थियों को ऐतिहासिक जानकारी दी। इस सर्वेक्षण में साहित्य संस्थान से डॉ. कुलशेखर व्यास, नारायण पालीवाल, शोयब कुरेशी, चिन्तन ठाकर, सौरभ भास्कर, राहुल मीणा, नियति कोठारी, दीप्ति पानेरी आदि शामिल रहे।

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